क्या दिखा था तुम्हें
पत्थरों से उलझ कर
हुआ हृदय छलनी सरिता का
जल पूरित आँचल में ही
घुल गया कहीं अश्रुजल उसका
टूट कर बिखरी धारा
असंख्य जल कणों में खो गयी
और तुमनें था कहा
प्रकृति विभूषित हो गयी
क्या कभी हृदय में
रंच मात्र न संदेह जगा
क्यूँ शुष्क नदी मार्ग
शैल कण से है सजा
कहीं ताप सहते हुए
शीतला शिला तो न हो गयी
स्याह वक्त से हार
हो थक कर सो रही
सुजाता दुआ
Saturday, July 18, 2009
Saturday, May 16, 2009
खोखला अस्तित्व
वो कल आयी थी
वही सवाल था उसकी
आँखों में
मेरे पास जिसका जवाब नहीं था
मैं उस से नजरें चुरानें लगा
पुरुष हो कर भी कमजोर हूँ
बुजदिली से उसे बतानें लगा
वह सुनती रही ,
मैं कहता रहा ...
वह लौट गयी......
मुझे भी गुमां होने लगा
अपनीं चतुराई का
और फिर सोचनें लगा
कल क्या कहूंगा
जवाब पहले से तय हो
तो जुबां लडखडाती नहीं हैं
आज... दिन ढले तक भी
वह नहीं आयी ...
कई बार मैं दरवाजे तक
जा कर हो आया
मन में बैचेनी
उफननें लगी
बाहों में पुरुषत्व
मचलनें लगा...
अँधेरे के फैलते साए में
मुझे साफ़ नजर
आनें लगा .....
अपना खोखला अस्तित्व
सुजाता दुआ
वही सवाल था उसकी
आँखों में
मेरे पास जिसका जवाब नहीं था
मैं उस से नजरें चुरानें लगा
पुरुष हो कर भी कमजोर हूँ
बुजदिली से उसे बतानें लगा
वह सुनती रही ,
मैं कहता रहा ...
वह लौट गयी......
मुझे भी गुमां होने लगा
अपनीं चतुराई का
और फिर सोचनें लगा
कल क्या कहूंगा
जवाब पहले से तय हो
तो जुबां लडखडाती नहीं हैं
आज... दिन ढले तक भी
वह नहीं आयी ...
कई बार मैं दरवाजे तक
जा कर हो आया
मन में बैचेनी
उफननें लगी
बाहों में पुरुषत्व
मचलनें लगा...
अँधेरे के फैलते साए में
मुझे साफ़ नजर
आनें लगा .....
अपना खोखला अस्तित्व
सुजाता दुआ
Sunday, May 3, 2009
कितनी ही बार ऐसा होता है की ना चाहते हुए भी
हम वह सब करते हैं जो समय हम से करवाता है
तब क्या हम बुजदिल होते हैं झूठ को झूठ नहीं कह
पाते और हर ग़लत को मुस्करा कर सही कहते हैं
या कि फिर
इस सच के पीछे एक दर्दीला सच यह भी है कि
मुस्करा कर जहर पीना हमारी आदत हो चुकी होती है .....
कुछ इसी दर्द से आहत हो कर कहा था ......
नज्म
अब तो हर बात पुरानी लगती है
सफा एजिन्दगी से बद गुमानी लगती है
हर चेहरे के पीछे एक नया चेहरा
यह महफिल अब अनजानी लगती है
छोडनें से छूट जाती तो क्या बुरा था
ज़माने से यह प्रीत पुरानी लगती है
बेजारी से कहते हैं अब न निभाएंगे
महक ए जिन्दगी न अब रूमानी लगती है
पल पल गिनते हैं ,मुस्करा कर मिलते हैं
जहर हँस के पीने की आदत पुरानी लगती है
सुजाता
हम वह सब करते हैं जो समय हम से करवाता है
तब क्या हम बुजदिल होते हैं झूठ को झूठ नहीं कह
पाते और हर ग़लत को मुस्करा कर सही कहते हैं
या कि फिर
इस सच के पीछे एक दर्दीला सच यह भी है कि
मुस्करा कर जहर पीना हमारी आदत हो चुकी होती है .....
कुछ इसी दर्द से आहत हो कर कहा था ......
नज्म
अब तो हर बात पुरानी लगती है
सफा एजिन्दगी से बद गुमानी लगती है
हर चेहरे के पीछे एक नया चेहरा
यह महफिल अब अनजानी लगती है
छोडनें से छूट जाती तो क्या बुरा था
ज़माने से यह प्रीत पुरानी लगती है
बेजारी से कहते हैं अब न निभाएंगे
महक ए जिन्दगी न अब रूमानी लगती है
पल पल गिनते हैं ,मुस्करा कर मिलते हैं
जहर हँस के पीने की आदत पुरानी लगती है
सुजाता
Thursday, April 23, 2009
हम सब के कितनें ही ख्वाब ऐसे होते हैं ..जों देखते ही देखते
जल कर राख हो जाते हैं तब जज्बातों की आँधी में ऐसा लगता
है जैसे जर्रा जर्रा हमारे ख़िलाफ़ साजिश कर रहा है जैसे किस्मत
के तमाम सितारे करवट लिए ...मुहँ फेर कर बैठे हैं ....
कुछ इसी तरह के दर्द में इस नज्म का जन्म हुआ था
मुजमिन्द रहा फिर भी ......
जल गया ख्वाबे जहाँ
रात कुटना हो गयी
बेच कर सारे जज्बात
हर उम्मीद सो गयी
उठ रहा था उस तरफ़
सुर्ख लाल सा धुआं
हो रहा था हर तरफ़
ख्वाबे -कत्ले -आम वहाँ
हवा थी बेहद गरम
शयातीन सारी फिजा
कर रहा था जैसे साजिश
जर्रा -जर्रा बारहा
स्याह परदों ने छुपाई
उम्मीद की हर किरण
लिए करवट बैठे रहे
सितारे तमाम बेरहम
कुल्ब:अहजां हो चला था
चाहे मेरा जहाँ ............ ।
मुजमिंद रहा था फिर भी
ऐ खुदा तुझ पे यकीं ....!!!!!
सुजाता
कुटना:middle man
कुल्ब:अहजां :a cottage of sorrow
मुजमिंद: stable
शयातीन:demon or devil
जल कर राख हो जाते हैं तब जज्बातों की आँधी में ऐसा लगता
है जैसे जर्रा जर्रा हमारे ख़िलाफ़ साजिश कर रहा है जैसे किस्मत
के तमाम सितारे करवट लिए ...मुहँ फेर कर बैठे हैं ....
कुछ इसी तरह के दर्द में इस नज्म का जन्म हुआ था
मुजमिन्द रहा फिर भी ......
जल गया ख्वाबे जहाँ
रात कुटना हो गयी
बेच कर सारे जज्बात
हर उम्मीद सो गयी
उठ रहा था उस तरफ़
सुर्ख लाल सा धुआं
हो रहा था हर तरफ़
ख्वाबे -कत्ले -आम वहाँ
हवा थी बेहद गरम
शयातीन सारी फिजा
कर रहा था जैसे साजिश
जर्रा -जर्रा बारहा
स्याह परदों ने छुपाई
उम्मीद की हर किरण
लिए करवट बैठे रहे
सितारे तमाम बेरहम
कुल्ब:अहजां हो चला था
चाहे मेरा जहाँ ............ ।
मुजमिंद रहा था फिर भी
ऐ खुदा तुझ पे यकीं ....!!!!!
सुजाता
कुटना:middle man
कुल्ब:अहजां :a cottage of sorrow
मुजमिंद: stable
शयातीन:demon or devil
Sunday, April 19, 2009
कैसा विस्तार है यह ..?
कैसा विस्तार है यह ..?
अब भी
मिटटी कि सौंधी महक
लुभाती है मुझे
और कराती है मुझे
मेरे होनें का एहसास
हाँ ....!!!!!!!
मैं हूँ अब भी ' वही' !!!!
फैले कार्य विस्तार को समेट
मैं कह उठती हूँ ......
फिर दूसरे ही पल
सोचती हूँ ....?
क्यों हुई इतनी विस्तारित
कि लुप्त हो गयी ......
और अकेली रहने को
अभिशिप्त हो गयी ...
कैसा विस्तार है यह ..?
जहाँ स्व- अस्तित्तव लुप्त है ?
सुजाता दुआ
अब भी
मिटटी कि सौंधी महक
लुभाती है मुझे
और कराती है मुझे
मेरे होनें का एहसास
हाँ ....!!!!!!!
मैं हूँ अब भी ' वही' !!!!
फैले कार्य विस्तार को समेट
मैं कह उठती हूँ ......
फिर दूसरे ही पल
सोचती हूँ ....?
क्यों हुई इतनी विस्तारित
कि लुप्त हो गयी ......
और अकेली रहने को
अभिशिप्त हो गयी ...
कैसा विस्तार है यह ..?
जहाँ स्व- अस्तित्तव लुप्त है ?
सुजाता दुआ
प्रेम - परिभाषा ..
प्रेम - परिभाषा ..
कुछ कहूं इससे पहले ही
तुम जान जाते हो
कैसे शब्दों को बिन कहे
पहचान जाते हो
कहाँ सीखी तुमनें
मौन की भाषा
क्या यही है
प्रेम - परिभाषा ..?
'समर्पित रहें सारे एहसास
न हो कहीं विरोधाभास
संशय न रहे आस पास
इतना हो अटूट विश्वास '
'मैं' कहीं न नज़र आए
'हम' में ही दुनिया समाये
चलो आज फिर दुहरायें
मिल कर यह कसम खाएं
सुजाता दुआ
कुछ कहूं इससे पहले ही
तुम जान जाते हो
कैसे शब्दों को बिन कहे
पहचान जाते हो
कहाँ सीखी तुमनें
मौन की भाषा
क्या यही है
प्रेम - परिभाषा ..?
'समर्पित रहें सारे एहसास
न हो कहीं विरोधाभास
संशय न रहे आस पास
इतना हो अटूट विश्वास '
'मैं' कहीं न नज़र आए
'हम' में ही दुनिया समाये
चलो आज फिर दुहरायें
मिल कर यह कसम खाएं
सुजाता दुआ
Thursday, April 16, 2009
Tuesday, April 14, 2009
A beautiful ...... gift
life is too bored
people have no time
for their love,friends
not even for their families
are they become tight -fisted
or self centered
they can hate
but not
love others...?
"No Its Not"
suddenly I got
reply....
I left surprised
who is he ...?
My soul replied
It's me dear
do not bother about anyone
the creater and destroyer
are within us
love yourself and
be good to the needy
and life become
beautiful for you
I feel
as if
I heard voice of god
aah .....
it's the gift
I never had before
Poet: Sujata Dua
Copyright © 2009 Sujata Dua
read: 3440 times Rating:**** Date: 10 February, 2009
This poetry has won the poetry craze compitition of march 2009
people have no time
for their love,friends
not even for their families
are they become tight -fisted
or self centered
they can hate
but not
love others...?
"No Its Not"
suddenly I got
reply....
I left surprised
who is he ...?
My soul replied
It's me dear
do not bother about anyone
the creater and destroyer
are within us
love yourself and
be good to the needy
and life become
beautiful for you
I feel
as if
I heard voice of god
aah .....
it's the gift
I never had before
Poet: Sujata Dua
Copyright © 2009 Sujata Dua
read: 3440 times Rating:**** Date: 10 February, 2009
This poetry has won the poetry craze compitition of march 2009
हाथ अगर तुमनें ....जरा बढाया होता
छुप छुप के ना पोंछते हम आँसू अपनें
हाथ अगर तुमनें ....जरा बढाया होता
यूँ तो बिकते हैं 'आँसू ' बेमोल हर जगह
झूठा ही सही कुछ मोल तुमनें लगाया होता
बात दिल में ही रख लेती तो अच्छा होता
खुद को सरे आम रुसवा तो ना कराया होता
होनें लगे एहसास.... बेनकाब यकबयक
काश तुमनें इमानें मुहब्बत निभाया होता
अब भी कहते हो तुम"हमें बताया होता"
जखम दिल का कभी दिखाया होता
हाथ अगर तुमनें ....जरा बढाया होता
यूँ तो बिकते हैं 'आँसू ' बेमोल हर जगह
झूठा ही सही कुछ मोल तुमनें लगाया होता
बात दिल में ही रख लेती तो अच्छा होता
खुद को सरे आम रुसवा तो ना कराया होता
होनें लगे एहसास.... बेनकाब यकबयक
काश तुमनें इमानें मुहब्बत निभाया होता
अब भी कहते हो तुम"हमें बताया होता"
जखम दिल का कभी दिखाया होता
Monday, March 16, 2009
टूटे सपने चुनता है .....
कभी सोचा है
एक दिन में
दिल कितनी बार
टूटता है....
और कितनी
बार सिलता है....
कुछ तरल सा
उसमें से निकलता
है और फिर
आंखों के रास्ते
बह जाता है ....
फिर संभलता है
निर्बाध ....
स्पंदित होता है
ना जानें ...?
कठिन पलों को
गिनता है या
टूटे सपने चुनता है
एक दिन में
दिल कितनी बार
टूटता है....
और कितनी
बार सिलता है....
कुछ तरल सा
उसमें से निकलता
है और फिर
आंखों के रास्ते
बह जाता है ....
फिर संभलता है
निर्बाध ....
स्पंदित होता है
ना जानें ...?
कठिन पलों को
गिनता है या
टूटे सपने चुनता है
Thursday, March 12, 2009
स्नेह ......चुम्बकीय हो जाए
तुम बातों को हमेशा
तौलते क्यों हो ....?
क्यों रहता है सदा
तुम्हारा मन असुरक्षित ...
जैसे.... कहीं कुछ छूट रहा हो ...
या की फिर छूटना चाहता हो ...!!
शायद लगता है तुम्हे ..
पकड़ मजबूत हो तो
कभी छूटती नहीं हैं
चीजें ...( ?????? )
तो क्या ....
संबंध भी ऐसे ही संभले रहते हैं
...मात्र मजबूत पकड़ में ......?
नहीं ...!!!!
संबंधों की डोर तो
बंधी रहती है
कोमल एहसासों से
वहाँ मजबूती ............ ..
गहराई से आती है
जितने गहरे एहसास
उतना मजबूत सम्बन्ध
अच्छा तुम्ही बताओ ..
कितनी देर तक पकड़ सकते हो
जो....र .......से चीजों को
आख़िर तो हाथ थकेगा न
और पकड़ ढीली हो जायेगी
या की फिर ............ .......
वो ही दम तोड़ जायेगा
जो बंद है .........तुम्हारे
मुट्ठी - पाश में ....
तो.....बेहतर है ...
करो कुछ ऐसा
की ....ें(रिश्ते ).......
ख़ुद ही जुड़े रहना चाहे तुमसे
इतना दो उनमें ें की
स्नेह चुंबकीय हो जाए
और फिर ............ .....
छूट जानें का डर ही न रहे !
सुजाता दुआ
तौलते क्यों हो ....?
क्यों रहता है सदा
तुम्हारा मन असुरक्षित ...
जैसे.... कहीं कुछ छूट रहा हो ...
या की फिर छूटना चाहता हो ...!!
शायद लगता है तुम्हे ..
पकड़ मजबूत हो तो
कभी छूटती नहीं हैं
चीजें ...( ?????? )
तो क्या ....
संबंध भी ऐसे ही संभले रहते हैं
...मात्र मजबूत पकड़ में ......?
नहीं ...!!!!
संबंधों की डोर तो
बंधी रहती है
कोमल एहसासों से
वहाँ मजबूती ............ ..
गहराई से आती है
जितने गहरे एहसास
उतना मजबूत सम्बन्ध
अच्छा तुम्ही बताओ ..
कितनी देर तक पकड़ सकते हो
जो....र .......से चीजों को
आख़िर तो हाथ थकेगा न
और पकड़ ढीली हो जायेगी
या की फिर ............ .......
वो ही दम तोड़ जायेगा
जो बंद है .........तुम्हारे
मुट्ठी - पाश में ....
तो.....बेहतर है ...
करो कुछ ऐसा
की ....ें(रिश्ते ).......
ख़ुद ही जुड़े रहना चाहे तुमसे
इतना दो उनमें ें की
स्नेह चुंबकीय हो जाए
और फिर ............ .....
छूट जानें का डर ही न रहे !
सुजाता दुआ
Thursday, March 5, 2009
यही हैं मेरे हमदम
Tuesday, February 24, 2009
Unpardonable Offence
Days are too short
even I can't get time
to pamper my dreams
I give birth to them
and It's me
who threw them
into a deep trench
pain of my soul
is indefinable as
my incomplete dreams
become
blisters of my soul
paining and blaming me
every day ,every night
that doesn't mean I never tried
but the roads of journey
was extensively spined
and then I gave up..
gave up with disgrace
my soul call me coward..
.....and unfaithful
I accept it...because
this is an unpardonable offence
yes it is!!!!!
Poet: Sujata Dua
Days are too short
even I can't get time
to pamper my dreams
I give birth to them
and It's me
who threw them
into a deep trench
pain of my soul
is indefinable as
my incomplete dreams
become
blisters of my soul
paining and blaming me
every day ,every night
that doesn't mean I never tried
but the roads of journey
was extensively spined
and then I gave up..
gave up with disgrace
my soul call me coward..
.....and unfaithful
I accept it...because
this is an unpardonable offence
yes it is!!!!!
Poet: Sujata Dua
Copyright © 2008 Sujata Dua
थोडा भ्रमित दुःख को भी कर लें
आओ प्रिय आज हम गायें
कुछ पल मन का दुःख बिसराएँ
दुःख के काले बादल भी जानें
हुआ नहीं कम धेर्य बताएं
न बनो अधीर सम गगरी
भरी नहीं कि छलकत जाए
और न चंचल सम पिहू
हवा के संग गा -गा बौराए
माना कठिन समय है आखिर
बचे बहुत कम क्षण है तो क्यूँ
हम घबरा के इन्हें गंवाएं
चलो आज कुछ क्षण तो जी ले
हवा सुगन्धित तन में भर लें
जीवन को साँसों में भर कर
थोडा भ्रमित दुःख को भी कर लें ...
सादर ,
सुजाता
आओ प्रिय आज हम गायें
कुछ पल मन का दुःख बिसराएँ
दुःख के काले बादल भी जानें
हुआ नहीं कम धेर्य बताएं
न बनो अधीर सम गगरी
भरी नहीं कि छलकत जाए
और न चंचल सम पिहू
हवा के संग गा -गा बौराए
माना कठिन समय है आखिर
बचे बहुत कम क्षण है तो क्यूँ
हम घबरा के इन्हें गंवाएं
चलो आज कुछ क्षण तो जी ले
हवा सुगन्धित तन में भर लें
जीवन को साँसों में भर कर
थोडा भ्रमित दुःख को भी कर लें ...
सादर ,
सुजाता
Wednesday, February 18, 2009
Monday, February 16, 2009
समझा न उसनें मुझ से कहा न गया
जखम दिल का कभी दिखाया न गया
महफिले चरागाँ है वो हम जानते हैं लेकिन
दिल का अँधेरा उससे मिटाया न गया
कल तक जो मिलता था रोज मुस्करा के
फटे हाली में आज 'मैं' उससे पहचाना न गया
बेहद अम्ली है वो हर पल रंग बदलता है
गोया तभी हमसे वो कभी परखा न गया
ऐ काश की समझता वो हाल- ए - दिल
कितना वीरानां है वहाँ हमसे बताया न गया
सुजाता
जखम दिल का कभी दिखाया न गया
महफिले चरागाँ है वो हम जानते हैं लेकिन
दिल का अँधेरा उससे मिटाया न गया
कल तक जो मिलता था रोज मुस्करा के
फटे हाली में आज 'मैं' उससे पहचाना न गया
बेहद अम्ली है वो हर पल रंग बदलता है
गोया तभी हमसे वो कभी परखा न गया
ऐ काश की समझता वो हाल- ए - दिल
कितना वीरानां है वहाँ हमसे बताया न गया
सुजाता
Thursday, February 5, 2009
सिंदूरी शाम का रंग चहेरे पर उतर आया था
जब मेरा साया उन्हें हौले से छु आया था
कहा था फिर दमकते गालों ने कुछ धीमे से
सुन जिसे मेरा रोम- रोम सिहर आया था
कर के मासूम इशारा जानें कहाँ पे छिप गए
इन्तेजार में दिल मेरा हलक में उतर आया था
अब तो हर पल का बीतना मुश्किल हो गया
कब जिन्दगी हो जाती सजा पता हो आया था
न तो मिलते हैं न कोई झलक ही पाता हूँ
मायनें इश्क है क्या अब समझ आया था
सुजाता
जब मेरा साया उन्हें हौले से छु आया था
कहा था फिर दमकते गालों ने कुछ धीमे से
सुन जिसे मेरा रोम- रोम सिहर आया था
कर के मासूम इशारा जानें कहाँ पे छिप गए
इन्तेजार में दिल मेरा हलक में उतर आया था
अब तो हर पल का बीतना मुश्किल हो गया
कब जिन्दगी हो जाती सजा पता हो आया था
न तो मिलते हैं न कोई झलक ही पाता हूँ
मायनें इश्क है क्या अब समझ आया था
सुजाता
Wednesday, February 4, 2009
Saturday, January 31, 2009
Friday, January 30, 2009
जमीन पर खुदा .....माँ की ही हस्ती है
माँ को मैने हमेशा
ऐसा ही देखा है
माथे पर पसीना
मुख पर तेज
दमकता है
इतनी ऊर्जा जानें कहाँ से
वेह पाती है
या की काम में डूब
अपना दर्द छिपाती है
लगता है माँ का मन आहत है
वो चुप चाप रो रही है.....
शायद दुखी मन धो रही है
भोर से रात तक वो खटती है
हर एक के लिए माँ हर रोज
कतरा कतरा मिट ती है ....
मैनें तो बस यही जाना है
जमीन पर खुदा का रूप
माँ की ही हस्ती है ...
बिन माँ के पूरा जहाँ
एक सूनी बस्ती है
सादर ,
सुजाता
ऐसा ही देखा है
माथे पर पसीना
मुख पर तेज
दमकता है
इतनी ऊर्जा जानें कहाँ से
वेह पाती है
या की काम में डूब
अपना दर्द छिपाती है
लगता है माँ का मन आहत है
वो चुप चाप रो रही है.....
शायद दुखी मन धो रही है
भोर से रात तक वो खटती है
हर एक के लिए माँ हर रोज
कतरा कतरा मिट ती है ....
मैनें तो बस यही जाना है
जमीन पर खुदा का रूप
माँ की ही हस्ती है ...
बिन माँ के पूरा जहाँ
एक सूनी बस्ती है
सादर ,
सुजाता
Thursday, January 29, 2009
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