Wednesday, December 28, 2011



Wednesday, December 24, 2008

पारदर्शिता

लोग अक्सर बनाते हैं ...
शब्दों के खूबसूरत घर
फिर उसे सजाते हैं ...
उपमाओं से ......
और खुश हो जाते हैं ...
अपनी वाक्कौशल पर


पता नहीं .....
नादान होते हैं या अनजान
जो इतना भी नहीं जानते
बिना भाव के शब्द
खोखले होते हैं ....
इतने पारदर्शी की
उनमें देखा जा सकता है
आर -पार की फिर
उन्हें (लोगों को ).....
आजमाने की
जरूरत भी नहीं रहती

सादर ,
सुजाता दुआ

Monday, December 19, 2011

कल से ही तुम्हारी बातें जेहन में  अटकी हैं ...बाकोशिश भी उतरती नहीं....पता नहीं तुम क्यूँ मेरे ख्यालों में  बिना
दस्तक के चले आते हो और फिर तब तक नहीं जाते जब तक मैं   ही थक न जाऊं .....सर्दी की रातों की तरह ही बेरहम होती हैं तुम्हारी बाते ..फंतासी से कोसों दूर निरी प्रक्टिकल ....पता नहीं तुम कब समझोगे जीने के लिए और खुश रहने के लिए फंतासी संजीवनी बूटी है ...हर दर्द का इलाज ....तुम फिर हंस देते हो ...तुम  पागल हो
कुछ नहीं होता फंतासी सिर्फ भरम है सिर्फ  भरम और कुछ नहीं......
मैं चुप रह जाती हूँ बहस करना फिजूल है ....कुदरत ने जो फर्क बनाया है उसके खिलाफ इंसानी लडाई करनें का मेरा कोई इरादा नहीं है ...और कोई फायदा भी नहीं ...तुम से तर्क में  जीतना मुझे कभी अच्छा नहीं लगा ......और तुम्हारा किसी भी बात से हारना तो कदापि नहीं ...पता नहीं क्यूँ तुम्हें जीतते हुए देखना ही हमेशा अच्छा लगा है मुझे .......
आज सुबह कितना कोहरा था ..हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था ...पर मुझे डर नहीं लगता गाडी   चलाते  हुए..डर मुझे  शायद कभी भी नहीं लगता ...   तब तो बिलकुल भी नहीं जब मैं  अकेली होती हूँ ..हाँ तब ..जरुर डर जाती हूँ जब तुम नाराज़ हो जाते हो ...और बात नहीं करते ...मुझे कभी समझ नहीं  आता की तुम नाराज़ क्यूँ हो जाते हो .....और फिर खुद ही मान भी जाते हो ....कितनी अजीब पहली हैं  तुम्हारा  मन ...पल में तोला पल में माशा.....नहीं यह मत समझना की मुझे डर है की मैं तुम्हें खो दूंगी याकि फिर तुम कहीं दूर चले जाओगे मुझे बिना बताये ...मुझे डर है की ..तुम जा कर भी नहीं जाओगे कहीं नहीं ..यूँ ही चिपके रहोगे मेरे ख्यालों से रात दिन .....न हो कर भी रहो ..इस से तो यह ही
अच्छा है की हो और रहो ......यादों में  टंग कर जिन्दगी नहीं बीतती यह मैं  बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ ......
लगता  है थोडा   थोडा  practically   सोचनें   लगी   हूँ अब  .... ...!!!!! संगती  का असर है सब ...कवि को लोहार बनते वकत नहीं लगता ......!!!!!!!

 सखत   लफ़्ज़ों में भी   मन  चाहा अर्थ  ढूढ़  लेता  है  मन
बदन  तितली  सा  पर   फौलाद  से  हौंसले  रखता  है  मन