Thursday, December 4, 2008


<बशीर बद्र साहब की गजल के कुछ शेर

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती है दिल को दिल बनाने में

फाख्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन सांप रखता है उसके आशियाने में
बशीर बद्र