Monday, October 8, 2012

आसान सवाल के जवाब कहना मुश्किल क्यूँ होता है



कई सवाल इतने   आसान  होते है की हर कोई उसका जवाब जानता है ..पर हैरानी है की जब उसे पूछा  जाता है तो लोग बगले झाँकने लगते हैं।।।कभी कभी समझ नहीं आता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो है लेकिन लोगो में  साहस नहीं है ...क्या यही कारण नहीं है की वर्षों तक हम सिर्फ वही जीते है जो बिना किसी रुकावट के उपलब्ध हो जाता है क्यूँकी  दुर्लभ    को पाने का साहस तो हम में  होता ही नहीं है और अपनी असमर्थता का   दोष किस्मत के सर थोप   कर अपराध मुक्त हो जाते हैं ..इतना तो तय है की हम अपनी अंतरात्मा  से डरते तो बहुत है ...भला कल को उसी ने सवाल कर लिया की अवसर भी था और समय भी तो आखिर तुमने कदम बढाया क्यूँ नहीं।।

हाँ हाँ हाँ ..मन आखिर प्रतिकार कर उठा ...मैं नहीं चाहता की मुझ से वो पूछो जो मैं वर्षों से जानता हूँ ..लेकिन कहता  नहीं हूँ ..ऐसा नहीं है की मैं कहना  नहीं चाहता या की   मैं डरता हूँ ...मुझे बस इतना पता है के जिस बात को अंजाम तक लाना मुमकिन ही नहीं उसे कह भर देने से तो हम अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकते न बात वो कहो  जिसे पूरा करने की सामर्थ्य हो ..सिर्फ साहस    से जंग नहीं जीती जाती इसीलिये  होठों को सिल लेना ही बेहतर समझता हूँ मैं .....

मैं इस अप्रत्याशित प्रहार के लिए तैयार नहीं थी इसलिए खामोशी से लौट आयी उंगली उठाना आसान है।।पर फिर भी कहना चाहती थी की   रास्ता बनाने का प्रयास तो करना ही चाहिए  था तुम्हें .....