Thursday, December 10, 2015




क्यों कैनवास खाली है
अब चिठियां आती नहीं
प्यार स्नेह से महकती हुई
कभी आँसुंओं से फैले अक्षर 
गुलाबी ,नीले ,पीले लिफ़ाफ़े
अपनेपन से भीगे हुए
हर पैर के नीचे गाड़ी है
फिर भी रफ़्तार सुस्त है
जिंदगी भारी है
ये कैसी लाचारी है
कोई अब मुस्कराता नहीं
हंसना किसी को आता नहीं
हाथ मिलाते है लोग
और निकल जाते है
कंधा अब थपथपाते नहीं
गले किसी को लगाते नहीं
किस बात की आपा- धापी है
हर रंग पड़ा है थाली में
फिर क्यों कैनवास खाली