Sunday, December 21, 2008
खुशियों के मायनें.....
याद है जब बचपन में कागज़ की नाव बना कर तैराया करते थे ...फिर जब कागज़ गीला हो जाता नाव ख़राब हो जाती तो झट दूसरा पना फाड़ कर नाव बना लेते हमेशा यही उम्मीद रहती की इस बार मेरी नांव जयादा चलेगी .......
यही उम्मीद फिर बड़े होने पर हमारे जीवन की डोर बन जाती है ...जिसे थाम कर हमें सपने सजानें होते हैं .....बचपन में तीतली के पीछे भागते थे ...अब बदलती मंजिलों की तरफ़ .भागते जा रहे हैं .....पहले गुड्डा गुडिया का घर सजाते थे ...अब अपना सजा रहे हैं ......
तो फिर आख़िर क्या है जो बदल गया है ....जब पहले छोटी छोटी चीजें खुशियाँ दे जाती
थीं तो अब क्यों खुशियों के मायनें बदल गए हैं .......
लम्हे भर का सुख .......
हर एक के जिन्दगी मैं एक ऐसा वक्त आता है जो कभी बीतता ही नहीं ...क्योंकी उसका बीत जाना हमें गंवारा नहीं होता ...बस हम उसे साथ लिए चलते रहते हैं ...ता उमर ...
खूबसूरत लम्हे का पल भर का सुख पूरी जिन्दगी के सुखों से कहीं जयादा होता है
थोड़े थोड़े लम्हे जोड़ कर फिर एक माला बनती है ... जिसे हम उमर भर जपते हैं ...बड़े प्यार से ..तो फिर क्यों हम हर पल की कीमत नहीं जान पाते ...जो आज बीत गया वेह कल नहीं आएगा ..तो क्यों न आज एक लम्हे की खुशी चुरा ली जाए ..कल की उदासी के पलों को हल्का करनें के लिए
ख्वाहिशों को समेटे
चले जा रहे हैं
बड़े रस्सा कश हैं
जिए जा रहे हैं
कोई जो पूछे .....
रुख क्या है हवा का ....
कितना हंसी दर्द है
पिए जा रहे ह.....
न छूटे े है सपनें
न छूटी कभी आशा ........,.
इन्तजार किसका किये जा रहे है
चाहूं तो भर लू जहान बाहों में
पर ....................
न जाने केसा है कर्ज
दिए जा रहे हैं
कोई तो बताये .....
क्या मंजिल है आख़िर
यूँ किस इंतजार में
घुले जा रहे हैं .......
सुजाता दुआ
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