Sunday, December 21, 2008


ख्वाहिशों को समेटे
चले जा रहे हैं
बड़े रस्सा कश हैं
जिए जा रहे हैं

कोई जो पूछे .....
रुख क्या है हवा का ....
कितना हंसी दर्द है
पिए जा रहे ह.....

न छूटे े है सपनें
न छूटी कभी आशा ........,.
इन्तजार किसका किये जा रहे है

चाहूं तो भर लू जहान बाहों में
पर ....................
न जाने केसा है कर्ज
दिए जा रहे हैं

कोई तो बताये .....
क्या मंजिल है आख़िर
यूँ किस इंतजार में
घुले जा रहे हैं .......
सुजाता दुआ

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