आस्था में बल है
उसनें किया था जब प्रहार धोखे से पीठ पर
रक्त रंजित हो बिखर गया था मन वहीँ पर
अंतस में जगी गहन कसक तिलमिला कर
करुण आह निर्वासित हुई थी विपन्न मन से
आनें लगी फिर स्व आस्था पर शर्म
किया कल्पित जिसनें पाषाण में सुधा का भ्रम
झन्ना कर कुछ टुकड़े टूट कर गिरे जहाँ पर
क्षोभ के मलिन गर्भ ने जन्मीं वितृष्णा वहाँ पर
हुआ था आक्रोश इतना रूह कांपनें लगी
दवेष की ज्वाला सर्प सी नाचनें लगी
क्षण उसी प्रतिबिम्ब देख दर्पण में काँप गयी
आशा दीप्त मुख पर हताशा किस वश जनीं
फिर चेताया आत्मा ने धीरे से सहला कर
मरहम अचेतन ने लगाया थोडा बहला कर
आस्था -स्त्रोत जो हुआ था शुष्क और रसहीन
एक नव - अंकुर फूटा था वहीं पर महीन
तिमिर हुआ नहीं कभी अमर प्रकृति का नियम है
हर निशा के अंत में प्रभात का जनम है
सुजाता दुआ
उसनें किया था जब प्रहार धोखे से पीठ पर
रक्त रंजित हो बिखर गया था मन वहीँ पर
अंतस में जगी गहन कसक तिलमिला कर
करुण आह निर्वासित हुई थी विपन्न मन से
आनें लगी फिर स्व आस्था पर शर्म
किया कल्पित जिसनें पाषाण में सुधा का भ्रम
झन्ना कर कुछ टुकड़े टूट कर गिरे जहाँ पर
क्षोभ के मलिन गर्भ ने जन्मीं वितृष्णा वहाँ पर
हुआ था आक्रोश इतना रूह कांपनें लगी
दवेष की ज्वाला सर्प सी नाचनें लगी
क्षण उसी प्रतिबिम्ब देख दर्पण में काँप गयी
आशा दीप्त मुख पर हताशा किस वश जनीं
फिर चेताया आत्मा ने धीरे से सहला कर
मरहम अचेतन ने लगाया थोडा बहला कर
आस्था -स्त्रोत जो हुआ था शुष्क और रसहीन
एक नव - अंकुर फूटा था वहीं पर महीन
तिमिर हुआ नहीं कभी अमर प्रकृति का नियम है
हर निशा के अंत में प्रभात का जनम है
सुजाता दुआ