Tuesday, November 18, 2008


अंतिम ख्वाहिश

आज जी चाहता है कहती रहूँ
प्रेम के दरिया मैं बहती रहूँ
खुदा न करे डूब जाऊं अगर
तुम से न मिल पाऊँ अगर
प्रिय इतना तो कर देना
दिल के पिछले कमरे मैं
थोडी सी जगह देना
चुपचाप पड़ी रहूँ गी.....
जरा दरवाजेदिल खुला रखना
की नगमों की आहट सुनती रहूँ
कुछ खवाब मैं भी बुनती रहूँ
सुजाता दुआ

हमदम

हर लम्हा दे जाता है खुशबू उसकी
हर आंसू गम दे जाता है
मेरा हमदम ऐसा है यारों
हंसते हंसते आंसू दे जाता है
सुजाता दुआ

उदासी

कब छोडोगे उदासी का आँचल
की हम तो अब हार गए
चले थे कुछ दिए जलाने
की खुद ही शमा हार गए
सुजाता दुआ


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खामोशी

खामोशी कुछ नहीं कहती बस तोड़ देती है
लहरों को उठने से पहले ही मोड़ देती है
कोई क्या जाने लहरों का गम ........
जब दरिया ही साथ छोड़ देती है ....!!

सुजाता दुआ



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