Saturday, October 27, 2012

(नज्म )


मुजमिन्द रहा फिर भी ......


जल गया ख्वाबे जहाँ


रात कुटना हो गयी


बेच कर सारे जज्बात


हर उम्मीद सो गयी




उठ रहा था उस तरफ़


सुर्ख लाल सा धुआं


हो रहा था हर तरफ़


ख्वाबे -कत्ले -आमद वहाँ




थी  हवा बेहद गरम


शयातीन सारी फिजा


जैसे साजिश कर रहा


जर्रा -जर्रा बारहा




स्याह परदों ने छुपाई


उममीद की हर किरण


लिए करवट बैठे रहे


सितारे तमाम बेरहम




कुल्ब हो चला था


ाहे मेरा जहाँ .............

ुजमिंद रहा था फिर भी

खुदा तुझ पे मेरा यकीं ....!!!!!

sujata