Tuesday, December 22, 2015






किसी  पाकदिल  से  मिले  अब  ज़माना  हुआ
नकाबपोशों  की  बस्ती  मैं  हर  शख्स  बेगाना  हुआ .
दुहाई  देते  रहे  वो  बदले  ज़माने  की
टटोला  खुद  को  तो  अपना  चेहरा  भी  खुद  से  अंजाना  हुआ  .

  
# माँ







चीजें रख कर  भूल जाती थी  माँ
पर
मेरे बचपन के किस्से अक्सर  दुहराती थी  माँ

मैं जब अपनी उपलब्धियां बताता था
उनमें अपने सपनों को जी जाती थी  माँ

चारों तरफ तालियों का शोर है गड़गड़ाहट है  
वहाँ आसमान पर सितारों से मेरा नाम लिखा करती है माँ  

बाहें फैलाता हूँ आसमान की तरफ
माँ को गलबहियां  डालना चाहता हूँ
मेरे चेहरे  पर कुछ बूंदें गिर आती है
अब इस तरह मेरे गालों को सहलाती है माँ

Thursday, December 10, 2015




क्यों कैनवास खाली है
अब चिठियां आती नहीं
प्यार स्नेह से महकती हुई
कभी आँसुंओं से फैले अक्षर 
गुलाबी ,नीले ,पीले लिफ़ाफ़े
अपनेपन से भीगे हुए
हर पैर के नीचे गाड़ी है
फिर भी रफ़्तार सुस्त है
जिंदगी भारी है
ये कैसी लाचारी है
कोई अब मुस्कराता नहीं
हंसना किसी को आता नहीं
हाथ मिलाते है लोग
और निकल जाते है
कंधा अब थपथपाते नहीं
गले किसी को लगाते नहीं
किस बात की आपा- धापी है
हर रंग पड़ा है थाली में
फिर क्यों कैनवास खाली 

Wednesday, March 11, 2015

किसी- किसी के तो महज वाकय ही कहानी कहते से लगते हैं ..हर शब्द के पीछे गहरी छाप होती है आत्मानुभूति की ...इतनी प्रत्यक्ष सच्चाई की आपको आपका अनुभव फीका दिखाई देने लगता है ...आखिर क्या -  क्या देखा ? क्या-क्या  महसूस किया ? जो  इतनी सी उम्र में इतना  सब समझ  लिया !
  गहराई को  बाहर से खड़े हो कर नापना खुद को सांत्वना देने जैसा है ...गहराई नापने से जयादा जरूरी है उसे अनुभव   करना ....

Sunday, March 8, 2015

लिस्ट बहुत लम्बी है...


मुझे बहुत सी चीजें बस यूँ ही बहुत पसंद हैं बिना किसी ख़ास वजह के ....जैसे नेस्कैफे की छोटी वाली गोल बोतल पैकिंग ..बहुत क्यूट सी लगती है ...जैसे बिना मेकअप के गहरी काली आँखें ..और रोने के बाद आंसूं से धुली आँखें कितनी प्यारी सी लगती हैं सवाल पूछती हुई सी ....और लम्बी सड़क की तस्वीर ...बहुत लम्बी सी सड़क जिसके अंत में एक मोड़ ही दिखाई देता है बस... उस मोड़ के बाद क्या है ... कुछ नजर नहीं आता ..और आसमान में बनते बादलों के चेहरे ....जैसे आसमान तरह से अपने बनते बिगड़ते moood को समझा रहा हो ..और बारिश से पहले के हलके ठन्डे मौसम में बस बिना किसी वजह के सड़क पर चुप चाप फिरना और मौसम से बिना शब्दों के भावनाओं का आदान प्रदान की देखो तुम आज खुश हो तो मैं भी खुश हूँ ...और लॉन्ग ड्राइव में किसी रोड साइड कैफ़े (ढाबे ) पर चारपाई पर बैठ कर चाय पीना और अगर वहां पुराने हिंदी गाने चल रहे हों तो बात ही क्या.....ऐसी बहुत सी बातें लिस्ट बहुत लम्बी है .......

लास्ट ट्रैन


एक बहुत लम्बा वक्त आसपास की जिंदगी से कटकर गुजरा .सुना था अँधेरे सिखा जाते हैं पर कभी पूरी तरह समझ नहीं आया यह तथय .कितना सिखाते है यह तो कहना मुश्किल है पर समझा बहुत जाते हैं ...अपने पराये का फर्क,emotional concern की ताकत ,your value for others ,दिखावटी कंसर्न का तार तार होता हुआ रूप और रियल कंसर्न का भीगा सम्मोहित नतमस्तक कर देने वाला रूप
बहुत सारी वर्चुअल और रियल तस्वीरें बदल जाती हैं और एक नया अध्याय जनम ले लेता है जिसे लिखते-पढ़ते समय आपकी दृष्टि एक्सरे मशीन हो जाती हैं और मस्तिष्क कोई दिव्य तराजू .
अस्तित्व का खुद से डायरेक्ट संवाद आपके आस पास के माया मोह जाल से आपको बहुत ऊपर उठा देता है और आहिस्ता आहिस्ता आप भीतर से पाषाण हो जाते हैं की फिर असंख्य अवांछित परिस्थितिया ऐसे ही निकल जाती हैं जैसे पत्थर के ऊपर से पानी निकलता है
करबद्ध नतमस्तक धन्यवाद उन सब लोगों ,परिस्थितयों ,नन्हे मासूम साथियों ,चीजों और उन भावनाओं का जिन्होंने एकतत्रित और संबलित होने में साथ दिया .सबसे अधिक ऋणी हूँ उस इमोशनल कंसर्न की जिसने मुझे यह एहसास दिलाया की मेरा अजीर्ण होता जा रहा अस्तित्व एक ऐसी खाई बना रहा है जिसमें बहुत से निरीह अस्तित्व दांव पर लग जाएंगे .इसी भावना ने इतना सम्बल दे दिया की उस दिव्य शक्ति के आधे लिखे फैसले से भिड़ गयी मैं .और उसे अपनी कलम रोकनी पडी...पता नहीं कब तक रुकी रहेगी उसकी कलम पर जितना भी वक्त है उसमें बहुत से अधूरे काम पूरे करने है और त्वरित अंदाज में क्यूंकि हो सकता है यह इस स्टेशन से चलने वाली लास्ट ट्रैन हो .