Tuesday, February 24, 2009

Unpardonable Offence

Days are too short
even I can't get time
to pamper my dreams

I give birth to them
and It's me
who threw them
into a deep trench

pain of my soul
is indefinable as
my incomplete dreams
become
blisters of my soul
paining and blaming me
every day ,every night

that doesn't mean I never tried
but the roads of journey
was extensively spined
and then I gave up..
gave up with disgrace

my soul call me coward..
.....and unfaithful
I accept it...because
this is an unpardonable offence
yes it is!!!!!

Poet: Sujata Dua
Copyright © 2008 Sujata Dua
थोडा भ्रमित दुःख को भी कर लें

आओ प्रिय आज हम गायें
कुछ पल मन का दुःख बिसराएँ
दुःख के काले बादल भी जानें
हुआ नहीं कम धेर्य बताएं

न बनो अधीर सम गगरी
भरी नहीं कि छलकत जाए
और न चंचल सम पिहू
हवा के संग गा -गा बौराए

माना कठिन समय है आखिर
बचे बहुत कम क्षण है तो क्यूँ
हम घबरा के इन्हें गंवाएं

चलो आज कुछ क्षण तो जी ले
हवा सुगन्धित तन में भर लें
जीवन को साँसों में भर कर
थोडा भ्रमित दुःख को भी कर लें ...
सादर ,
सुजाता

मेरा हर सवाल
दीवारों से टकरा कर
खाली हाथ लौट आता है
हर कश्ती को मांझी मिल जाए यह जरूरी तो नहीं

Saturday, February 21, 2009

मंजिलों के उजाले
मुझे नहीं लुभाते

मैने साहिल पर कश्तियों को डूबते देखा है

Wednesday, February 18, 2009

दर्द की थकी लकीरें उसके चेहरे पर
बार बार कसमसा कर लौट आती थीं

'पुरानें जख्मों' की चुभन उसे 'अब' भी तोड़ जाती है
वो बात करते हुए अक्सर
अनकही बातों के जाल में उलझ जाती है

उसे पता नहीं .. बिनकहे वेह बहुत कुछ कह जाती है
उस दिन जब तुमनें कहना चाहा था
दिल का कोई भेद मैने बात पलट दी थी

गहराइयों के अंधेरे बहुत भयानक होते हैं

Monday, February 16, 2009

समझा न उसनें मुझ से कहा न गया
जखम दिल का कभी दिखाया न गया

महफिले चरागाँ है वो हम जानते हैं लेकिन
दिल का अँधेरा उससे मिटाया न गया

कल तक जो मिलता था रोज मुस्करा के
फटे हाली में आज 'मैं' उससे पहचाना न गया

बेहद अम्ली है वो हर पल रंग बदलता है
गोया तभी हमसे वो कभी परखा न गया

ऐ काश की समझता वो हाल- ए - दिल
कितना वीरानां है वहाँ हमसे बताया न गया
सुजाता

Thursday, February 5, 2009

सिंदूरी शाम का रंग चहेरे पर उतर आया था
जब मेरा साया उन्हें हौले से छु आया था

कहा था फिर दमकते गालों ने कुछ धीमे से
सुन जिसे मेरा रोम- रोम सिहर आया था

कर के मासूम इशारा जानें कहाँ पे छिप गए
इन्तेजार में दिल मेरा हलक में उतर आया था

अब तो हर पल का बीतना मुश्किल हो गया
कब जिन्दगी हो जाती सजा पता हो आया था

न तो मिलते हैं न कोई झलक ही पाता हूँ
मायनें इश्क है क्या अब समझ आया था
सुजाता

Wednesday, February 4, 2009

जिनके खून से रंगी हैं सरहदें देश की
उन शहीदों के घर में फाके होते हैं
एहसान फरामोश हैं हम जान के बदले में फाके देते हैं