Wednesday, November 26, 2008

मैं तुम्हें क्या कहूँ


मैं तुम्हें क्या कहूँ

अगर कहूँ तुम्हें
कोमल कलिका,
तो मन घबरा जाता है
फूल का तो कुछ ही दिन में
अंत समय आ जाता है

अगर कहूँ तुम्हें
श्वेत सरिता
तो बेचैन मन हो जाता है
सरिता का जीवन तो
अनथक चलता जाता है

अगर कहूँ तुम्हें
नभ की तारिका
तो भयभीत मन हो जाता है
तारिका को तो इन्सान
रात में ही देख पाता है

अगर कहूँ
तुम हो साँसें मेरी
तो मन थोडा बहल जाता है
क्यूंकि यह तो तय है
श् वास तो प्राणों के साथ ही जाता है
सुजाता दुआ