Monday, May 30, 2011

 एक ख़याल ही था शायद  जो आ कर  लौट गया चुप चाप
अगर  तुम होते  तो यकीनन   खिलखिलाती सब दिशाएँ

चलो न आओ न सही 
न बुलाओ न सही

बन जाओ ख़याल ही अगर तो
दिल  बहल जाएगा 
सफा ऐ   जिन्दगी में एक ख्वाब तो मुस्कराएगा 

Saturday, May 28, 2011

बहुत   दिन नहीं  हुए अभी इस बात को याद तो तब धुंदली होती है  न जब हम उसे उपेक्षित छोड दे  कभी दोहराये नहीं लेकिन उन यादों का क्या करें जिन्हें हम हर समय साथ लिए फिरते है वो उतरती नहीं और हम उनसे छूटते नहीं  खैर वो जो भी हो मुद्दा यह है की कितना ठीक है यादों को ढोना जब जानते हैं की याद सिर्फ याद है और वो कभी आज नहीं हो सकती ....मिथ्या है ....  तो क्यों बेवजह तर्क देते हैं ....कभी खुद को सही ठेरातेय  हैं और कभी नियति को गलत ....
गुजर जाए वो लम्हा तो ही अच्छा है
बिता वकत चाहे जितना अच्छा है
साथ तो आज ही चला है न हमेशा
फिर  चाहे वो झूठा है या सच्चा है

Friday, May 27, 2011

कुछ पल

कुछ पल बचा लूं उमर के 
डाल दूं  गुल्लक में   के खर्च न हों 

करूंगी  खर्च  उसे   तब ....  जब जिन्दगी मुझे कुछ  लम्हे उधार देगी


कुछ खनकते शब्दों की आहट थी 
याकि लोरी के बोलों का सरूर 
नींद बहुत आयी कल रात मुझे 
जब माँ नें सहलाया माथा मेरा
जाने  किस  रस्साकशी में उमर बिताए  जाते  हैं
ना  सिरा है मेरे पास  न सिरा है तेरे पास
     फिर भी खुद को उलझाए जाते हैं    
कुछ काम हम आदतन किया करते हैं
तेरी हर बात का एतबार किया करते हैं
मालूम है की ना आओगे तुम   कभी
फिर भी हर राह  इंतज़ार किया करते हैं

Thursday, May 26, 2011

अब  भी  जेहन में  महकता है ईमान मेरा
बेकदर हो कर भी दमकता है ईमान मेरा
बात करते हें अपनों सी फिर भी 'नकाब ' रखते हैं
अब जमाने में लोग कहाँ 'अदब ओ लिहाज' रखते हैं