Friday, July 19, 2013

सच को दिल से सुना जाता है और झूठ को दिमाग से 
कभी कभी भावनाओं और शब्दों की लुका  छिपी बहुत परेशान करती है ..भावानाएं हैं की उमड़ उमड़ कर पड़    रही हैं और शब्द हैं की साथ ही नहीं देना चाहते रूठे बैठे  रहेंगे.. यहाँ वहां  छिपते रहेंगे ..शब्दों और भावानाओं के प्रेम की नोकझोंक में मैं बेहाल हो जाती हूँ  ..घर में बच्चों और उनके पापा के बीच ताल मेल बिठाओ और लेखन में शब्दों और भावनाओं की सुलह करवाओ    ..या खुदा मुझे हर क्षेत्र में रिंग मास्टर ही बनाना था तो ट्रेनिंग तो दिलाई होती 
पूछो  कुछ तो कहानियां बनाता है
 हर बात को हंस के टाल जाता है

जखम जमाने से खाए हैं इतने की
 जाम कतरा कतरा दरद  में  ढालता है

मुड कर देखना  पसंद नहीं था कभी
यारी पर ग़मों से हर लम्हा पालता है

 जहन  स्याह  परछाइयां मायूस   हैं मगर
कागज़  पर खुशनूमा  तस्वीरें निकालता है

कहता है गम बिक जाते हैं  सही- सही
दर्द  बड़ी शिद्दत से बोलो में उतारता है    

रात भर गीतों में सपने उडेलता है
हर सुबह सूरज को हाथों से उकेरता है

 कहता है  बुजदिल  हैं वो  जो  ग़मों में रोया करते हैं
काबिल तो तलवार की धार  पर उम्र निकाल जाते हैं