कभी कभी भावनाओं और शब्दों की लुका छिपी बहुत परेशान करती है ..भावानाएं हैं की उमड़ उमड़ कर पड़ रही हैं और शब्द हैं की साथ ही नहीं देना चाहते रूठे बैठे रहेंगे.. यहाँ वहां छिपते रहेंगे ..शब्दों और भावानाओं के प्रेम की नोकझोंक में मैं बेहाल हो जाती हूँ ..घर में बच्चों और उनके पापा के बीच ताल मेल बिठाओ और लेखन में शब्दों और भावनाओं की सुलह करवाओ ..या खुदा मुझे हर क्षेत्र में रिंग मास्टर ही बनाना था तो ट्रेनिंग तो दिलाई होती
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