Friday, July 19, 2013

पूछो  कुछ तो कहानियां बनाता है
 हर बात को हंस के टाल जाता है

जखम जमाने से खाए हैं इतने की
 जाम कतरा कतरा दरद  में  ढालता है

मुड कर देखना  पसंद नहीं था कभी
यारी पर ग़मों से हर लम्हा पालता है

 जहन  स्याह  परछाइयां मायूस   हैं मगर
कागज़  पर खुशनूमा  तस्वीरें निकालता है

कहता है गम बिक जाते हैं  सही- सही
दर्द  बड़ी शिद्दत से बोलो में उतारता है    

रात भर गीतों में सपने उडेलता है
हर सुबह सूरज को हाथों से उकेरता है

 कहता है  बुजदिल  हैं वो  जो  ग़मों में रोया करते हैं
काबिल तो तलवार की धार  पर उम्र निकाल जाते हैं 


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