Sunday, October 14, 2012

ख़याल जब बचपन में हुआ करता था

दूध सा शफ्फाक   हुआ करता था
ख़याल जब बचपन में हुआ करता था

झांसी की रानी और राणा प्रताप का घोड़ा
कल्पना में  अक्सर रूबरू हुआ करता था

खून  भी रगों का बहुत उबाल  खाता था
ख्वाब में  भी गर दुश्मन आँख उठाता था

आज जब वक्त है और जवानी  भी
खून भी है  गरम है  रगों में रवानी भी

 झांसी की  रानी  को भूल कर
चेतक की  स्वामी भक्ति रख ताक पर

मैं मशगूल हूँ   हर दिन के काम
  और  ऐशो -आराम में 

भूल कर खुद को हर रोज मिटा जाता  हूँ
न  खुद के लिए न देश के लिए जीता हूँ

 हर रोज ..हर पल मरा करता हूँ
फिर भी गरूर है की जिया करता हूँ

ख़याल कुछ आते नहीं मटमैली तस्वीर हूँ
एक शहरी हूँ ..  धुंआ हर पल पिया  करता हूँ

स्याह हूँ ....स्वाह हो रहा हूँ मैं
शफ्फाक  ख्यालों से दूर हो रहा हूँ मैं

पलट कर देखने से भी डरता हूँ और
दिखाता हूँ के  साथ सब लिए चल रहा हूँ मैं  

एक सन्देश अल्पना के नाम ..अगर वो पढ़ सके तो

 जिन्दगी का बोझ इतना भारी  कभी हो ही नहीं सकता की उसे उठा कर चला  न जा सके  ..........ऐसा ही कुछ कहती थी वो कभी  .....जहां तक उसका सवाल था .....एक  बार जिन्दगी ने उससे हार मान ली हो होगी मगर वो आखिरी सांस तक सर उठा कर ही जी थी .......  .....अंब यह बात और है की सिर्फ सताईस साल  में  ही इश्वर ने उसे    अपने   पास बुला लिया था ......शायद इश्वर का होंसला भी
तब कमजोर रहा होगा  और  उसे भी किसी उत्साह वर्धक आख्यान की जरुरत महसूस हुई होगी तो बुला भेजा उसे .
इतने  हैरान क्यूँ   हैं  ....क्या  इश्वर का होंसला कभी कमजोर नहीं हो सकता ?....हो सकता है भई .... हर दिन  लाखों करोड़ों लोगों की समस्याएं सुनते  हैं वो ....आखिर को तो थकते ही होंगे न ....

सृष्टी के  कर्ता  और नियामक कब  ...क्यूँ ....और कैसा करेंगे ....यह तो वह ही जाने ..मुझे तो सिर्फ इतना पता है की उसके जाने के बाद जिन्दगी ही नहीं वक्त भी थम गया है ...हो रहा है सब  कुछ समय और जरुरत के अनुसार ..पर उसमें मैं कहीं भी नहीं हूँ ...और शायद होना भी नहीं चाहती ... एक अंतराल सा आया गया है .....जिन्दगी और मेरे बीच .......जिसे पाटना अब मेरे बस में नहीं है ...

लोग कहते हैं किसी के जाने से जिन्दगी कभी रुकती नहीं ......पर मैं इसे  सिरे से नकारती हूँ .....उसके जाने की बाद .....बहुत कुछ हुआ ..पर मैं अब भी वहीं हूँ ..जहां  उसने छोड़ा था ...और आज भी अगर वह है यहीं कहीं .....तो मेरा अनुरोध है की ..एक बार इसे   पढ़ ले ..और अगर हो सके तो मुझे बताये की मेरी गिनती किन लोगों मैं होती है वह जिनमें प्राण हैं या वह जिनमें प्राण तो हैं पर आत्मा बैरागी हो चुकी है