Sunday, October 14, 2012

ख़याल जब बचपन में हुआ करता था

दूध सा शफ्फाक   हुआ करता था
ख़याल जब बचपन में हुआ करता था

झांसी की रानी और राणा प्रताप का घोड़ा
कल्पना में  अक्सर रूबरू हुआ करता था

खून  भी रगों का बहुत उबाल  खाता था
ख्वाब में  भी गर दुश्मन आँख उठाता था

आज जब वक्त है और जवानी  भी
खून भी है  गरम है  रगों में रवानी भी

 झांसी की  रानी  को भूल कर
चेतक की  स्वामी भक्ति रख ताक पर

मैं मशगूल हूँ   हर दिन के काम
  और  ऐशो -आराम में 

भूल कर खुद को हर रोज मिटा जाता  हूँ
न  खुद के लिए न देश के लिए जीता हूँ

 हर रोज ..हर पल मरा करता हूँ
फिर भी गरूर है की जिया करता हूँ

ख़याल कुछ आते नहीं मटमैली तस्वीर हूँ
एक शहरी हूँ ..  धुंआ हर पल पिया  करता हूँ

स्याह हूँ ....स्वाह हो रहा हूँ मैं
शफ्फाक  ख्यालों से दूर हो रहा हूँ मैं

पलट कर देखने से भी डरता हूँ और
दिखाता हूँ के  साथ सब लिए चल रहा हूँ मैं  

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