Thursday, March 12, 2009

स्नेह ......चुम्बकीय हो जाए

तुम बातों को हमेशा
तौलते क्यों हो ....?
क्यों रहता है सदा
तुम्हारा मन असुरक्षित ...
जैसे.... कहीं कुछ छूट रहा हो ...
या की फिर छूटना चाहता हो ...!!

शायद लगता है तुम्हे ..
पकड़ मजबूत हो तो
कभी छूटती नहीं हैं
चीजें ...( ?????? )

तो क्या ....
संबंध भी ऐसे ही संभले रहते हैं
...मात्र मजबूत पकड़ में ......?

नहीं ...!!!!
संबंधों की डोर तो
बंधी रहती है
कोमल एहसासों से
वहाँ मजबूती ............ ..
गहराई से आती है
जितने गहरे एहसास
उतना मजबूत सम्बन्ध

अच्छा तुम्ही बताओ ..
कितनी देर तक पकड़ सकते हो
जो....र .......से चीजों को
आख़िर तो हाथ थकेगा न
और पकड़ ढीली हो जायेगी
या की फिर ............ .......
वो ही दम तोड़ जायेगा
जो बंद है .........तुम्हारे
मुट्ठी - पाश में ....

तो.....बेहतर है ...
करो कुछ ऐसा
की ....ें(रिश्ते ).......
ख़ुद ही जुड़े रहना चाहे तुमसे
इतना दो उनमें ें की
स्नेह चुंबकीय हो जाए
और फिर ............ .....
छूट जानें का डर ही न रहे !
सुजाता दुआ