Saturday, January 31, 2009

बेहद झीनें होते है वो रिश्ते
जो गर्म हवा में झुलस जाते हैं

कोई बूझे इससे पहले ही वेह खुल जाते हैं
सुजाता
बड़ी हसरत से देखती है वो
नीले आसमान में उडते पंछियों को

शायद कभी उसके ख्वाहिशात को भी पंख मिल जाएँ
सुजाता
इतने दिनों तक तसवुर में देखा किये जिसे
वो सामनें आया तो पहचाना न गया

बेहद अम्ली है वो हर पल रंग बदलता है
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हर बार कहता है वो अब नहीं जायेगा
और माँ मान जाती है

माँ का दिल फरेब कहाँ समझता है

सुजाता