I owe to my dream world
Wednesday, February 18, 2009
दर्द की थकी लकीरें
उसके
चेहरे पर
बार बार कसमसा कर लौट आती थीं
'पुरानें जख्मों' की चुभन उसे 'अब' भी तोड़ जाती है
वो बात करते हुए अक्सर
अनकही बातों के जाल में उलझ जाती है
उसे पता नहीं .. बिनकहे वेह बहुत कुछ कह जाती है
उस दिन जब तुमनें कहना चाहा था
दिल का कोई भेद मैने बात पलट दी थी
गहराइयों के अंधेरे बहुत भयानक होते हैं
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