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तुमने चाहा था
खोल दूँ दिल की गांठ
होंठ तो खुले पर
शब्द निकले ही नहीं
आँखों ने तो कही थी
मन की वेह बात पर
तुम समझे ही नहीं
मैंने चाहा तो था तुम
पढो दिल की किताब
उन पृष्ठों पर थे जो शब्द
तुम्हे दिखे ही नहीं
कहा था तुमने
यह है जनम भर का साथ
पर कहां था तुम्हारा हाथ
मुझे दिखा ही नहीं
मेरा हर सवाल
लोट आता खाली हाथ
फिर भी हो भ्रमित
चल रहीं हूँ साथ
क्यों है अब भी आस
मैं समझी ही नहीं
सुजाता दुआ