सिंदूरी शाम का रंग चहेरे पर उतर आया था
जब मेरा साया उन्हें हौले से छु आया था
कहा था फिर दमकते गालों ने कुछ धीमे से
सुन जिसे मेरा रोम- रोम सिहर आया था
कर के मासूम इशारा जानें कहाँ पे छिप गए
इन्तेजार में दिल मेरा हलक में उतर आया था
अब तो हर पल का बीतना मुश्किल हो गया
कब जिन्दगी हो जाती सजा पता हो आया था
न तो मिलते हैं न कोई झलक ही पाता हूँ
मायनें इश्क है क्या अब समझ आया था
सुजाता
5 comments:
कर के मासूम इशारा जानें कहाँ पे छिप गए
इन्तेजार में दिल मेरा हलक में उतर आया था
न तो मिलते हैं न कोई झलक ही पाता हूँ
मायनें इश्क है क्या अब समझ आया था
Bhavpurn rachna...bahot hi achha likha he aapne....
वही बात है--
"साफ़ छिपते भी नहीं,
और सामने आते भी नहीं।"
सुजाता,
सुन्दर अबिव्यक्ति है ।
शकुन्तला बहादुर
सुंदर भावाभिव्यक्ति
सुधा
सुजाता,
भाव सुन्दर हैं
सादर
राकेश
bahut sundar bahut hi sundar
badhai
kusum
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