एक बहुत लम्बा वक्त आसपास की जिंदगी से कटकर गुजरा .सुना था अँधेरे सिखा जाते हैं पर कभी पूरी तरह समझ नहीं आया यह तथय .कितना सिखाते है यह तो कहना मुश्किल है पर समझा बहुत जाते हैं ...अपने पराये का फर्क,emotional concern की ताकत ,your value for others ,दिखावटी कंसर्न का तार तार होता हुआ रूप और रियल कंसर्न का भीगा सम्मोहित नतमस्तक कर देने वाला रूप
बहुत सारी वर्चुअल और रियल तस्वीरें बदल जाती हैं और एक नया अध्याय जनम ले लेता है जिसे लिखते-पढ़ते समय आपकी दृष्टि एक्सरे मशीन हो जाती हैं और मस्तिष्क कोई दिव्य तराजू .
अस्तित्व का खुद से डायरेक्ट संवाद आपके आस पास के माया मोह जाल से आपको बहुत ऊपर उठा देता है और आहिस्ता आहिस्ता आप भीतर से पाषाण हो जाते हैं की फिर असंख्य अवांछित परिस्थितिया ऐसे ही निकल जाती हैं जैसे पत्थर के ऊपर से पानी निकलता है
करबद्ध नतमस्तक धन्यवाद उन सब लोगों ,परिस्थितयों ,नन्हे मासूम साथियों ,चीजों और उन भावनाओं का जिन्होंने एकतत्रित और संबलित होने में साथ दिया .सबसे अधिक ऋणी हूँ उस इमोशनल कंसर्न की जिसने मुझे यह एहसास दिलाया की मेरा अजीर्ण होता जा रहा अस्तित्व एक ऐसी खाई बना रहा है जिसमें बहुत से निरीह अस्तित्व दांव पर लग जाएंगे .इसी भावना ने इतना सम्बल दे दिया की उस दिव्य शक्ति के आधे लिखे फैसले से भिड़ गयी मैं .और उसे अपनी कलम रोकनी पडी...पता नहीं कब तक रुकी रहेगी उसकी कलम पर जितना भी वक्त है उसमें बहुत से अधूरे काम पूरे करने है और त्वरित अंदाज में क्यूंकि हो सकता है यह इस स्टेशन से चलने वाली लास्ट ट्रैन हो .
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