अर्थ
जीवन के बदलते रंग
अपनी भिन्न किस्मों में
कितने आकर्षक ,
कितने तकलीफदेह
तय करना मुश्किल है
हर रंग पर स्नेह का सुनहला आवरण....
रंग क्या है ...?
यह तो मैं जान ही नहीं पाती
सिर्फ एहसास है कि
हाँ कोई रंग है ......
चमचमाती रोशनी में रहते रहते भी
आँखें कभी अभ्यस्त नहीं होतीं चुंधियानें की
सर्दियों की धूप कितनी ही
आनन्द दायक क्यों न हो
देर तक धूप सेंकनें के बाद
अंततः चुभनें ही लगती है
अति हर बात की
अंत में बुरी ही क्यों होती है .....?
क्या ...क्यों... और कैसे के
विध्वंसक प्रशन चिन्ह
जब तुम्हे देखते ही
विलुप्त हो जाते है
तब
अपने अबोध बोध में ही
मैं अचानक पा जाती हूँ
जीवन के नए अर्थ
सुजाता दुआ
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