आहटों पर जितना चोंकती थी मैं
सन्नाटों ने उतना आदि कर दिया
कितना भी चाहूँ दूर न हूँ तुमसे
मजबूरियों ने उतना बाधित कर दिया
रह रह कर आ रही है दिल से ये सदा
फासलों ने क्यों हमें बेबस कर दिया
चाहती तो क्यों कर झेलती सन्नाटे
सन्नाटों ने शायद बहरा कर दिया
पुकारा तो था तुमने हर बार ....
अनसुना हर बार हमने कर दिया
आती होगी आज भी तुम्हारी आवाज
हमनें ही दरवाजों को बंद कर दिया
फिर क्यों मलाल है दिल को यह आज
न चाहते हुए भी यह क्या कर दिया
अपनी ही हाथों से किये थे दरवाजे बंद
फिर आज क्यों सोचा यह क्या कर दिया
सुजाता दुआ
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