Friday, January 30, 2009

जमीन पर खुदा .....माँ की ही हस्ती है

माँ को मैने हमेशा
ऐसा ही देखा है
माथे पर पसीना
मुख पर तेज
दमकता है

इतनी ऊर्जा जानें कहाँ से
वेह पाती है
या की काम में डूब
अपना दर्द छिपाती है


लगता है माँ का मन आहत है
वो चुप चाप रो रही है.....
शायद दुखी मन धो रही है

भोर से रात तक वो खटती है
हर एक के लिए माँ हर रोज
कतरा कतरा मिट ती है ....

मैनें तो बस यही जाना है
जमीन पर खुदा का रूप
माँ की ही हस्ती है ...

बिन माँ के पूरा जहाँ
एक सूनी बस्ती है


सादर ,
सुजाता

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