Sunday, May 3, 2009

कितनी ही बार ऐसा होता है की ना चाहते हुए भी
हम वह सब करते हैं जो समय हम से करवाता है
तब क्या हम बुजदिल होते हैं झूठ को झूठ नहीं कह
पाते और हर ग़लत को मुस्करा कर सही कहते हैं
या कि फिर
इस सच के पीछे एक दर्दीला सच यह भी है कि
मुस्करा कर जहर पीना हमारी आदत हो चुकी होती है .....

कुछ इसी दर्द से आहत हो कर कहा था ......

नज्म
अब तो हर बात पुरानी लगती है
सफा एजिन्दगी से बद गुमानी लगती है
हर चेहरे के पीछे एक नया चेहरा
यह महफिल अब अनजानी लगती है
छोडनें से छूट जाती तो क्या बुरा था
ज़माने से यह प्रीत पुरानी लगती है
बेजारी से कहते हैं अब न निभाएंगे
महक ए जिन्दगी न अब रूमानी लगती है
पल पल गिनते हैं ,मुस्करा कर मिलते हैं
जहर हँस के पीने की आदत पुरानी लगती है
सुजाता

4 comments:

श्रद्धा जैन said...

bahut hi achhi rachna
पल पल गिनते हैं ,मुस्करा कर मिलते हैं
जहर हँस के पीने की आदत पुरानी लगती है

khas kar ye sher

Sujata Dua said...

aadarneeyaa shradha ji ,
blog par aane ke liye shukriyaa
mainey aapko e kavitaa main padhaa hai ...aap bahut acchaa likhtee hain
saadar,
sujata

Rakesh khandelwal said...

हर चेहरे के पीछे एक नया चेहरा
यह महफिल अब अनजानी लगती है

अच्छा ख्याल है.

सदर

राकेश

Ranjan said...

Wah Kya baat hai!!