Tuesday, April 14, 2009

हाथ अगर तुमनें ....जरा बढाया होता

छुप छुप के ना पोंछते हम आँसू अपनें
हाथ अगर तुमनें ....जरा बढाया होता

यूँ तो बिकते हैं 'आँसू ' बेमोल हर जगह
झूठा ही सही कुछ मोल तुमनें लगाया होता

बात दिल में ही रख लेती तो अच्छा होता
खुद को सरे आम रुसवा तो ना कराया होता

होनें लगे एहसास.... बेनकाब यकबयक
काश तुमनें इमानें मुहब्बत निभाया होता

अब भी कहते हो तुम"हमें बताया होता"
जखम दिल का कभी दिखाया होता

4 comments:

Navneet Sharma said...

ye sher sacche man ki abhvyakti hain. khoob likhti rahen, Aapki kavitaayen bhi sunder hain. Badhai.

Sujata Dua said...

Dear navneet and abha,
warm welcome at my thread... n..thanks for appreciation...

Amitabh Tripathi said...

सुजाता जी,
ये शेर अच्छा लगा|
प्यार दिल में ही दबा देते तो अच्छा होता
सरे आम खुद को रुसवा ना कराया होता
बधाई
सादर
अमित

शकुन्तला बहादुर said...

सुजाता जी,

नज़्म में पिरोये भावपूर्ण उद्गार मन को छू गये। सुन्दर नज़्म है।

शकुन्तला बहादुर