संग दिल हो हमसफ़र तो क्या करे गोया कोई
अंधेरों में बेआवाज .......आँचल भिगोये कोई
हंगामे फुरकत में... हमसफ़र हैं यादों के दिए
जिनमें शबे दार बन... आह भर रोया कोई
अपनों ने ही किये हैं जुल्मों सितम बारहा
गैरों की बेवफाई पर क्यों कर रोया कोई
सादिक के इंतजार में जिस्त लगी हैं मिटने
किस तरह बुझने से ...अब ...इसे बचाए कोई
सुजाता
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