Saturday, November 8, 2008


एक मासूम सा ख्वाब

कल फिर उससे मुलाकात हुई
न जाने क्यों वो उदास थी,
कुछ न कुछ तो ज़रूर बात थी।

पर वो न मेरी दोस्त थी
न ही मैं उसे जानता था
पर फिर भी लगता था
बरसों से पहचानता था।

उसके गीले गाल
कुछ कह रहे थे,
जी चाह रहा था कि
उसके सारे आंसू पी लूं,
कितने ही जख्म हों, सब मैं ले लूं।

पर मर्यादा में बंधा
वहीं रह गया,
चुपचाप
यूं ही खड़ा रह गया......

कुछ देर बाद
वह उठ कर चल दी....
सोचा आज यूं ही नहीं जाने दूंगा
कुछ भी हो जाए
फिर इसे नहीं खोने दूंगा।

मैने पुकारा ...रूको... तो ज़रा...
ठहरो ज़रा, मत जाओ.....
पर वह....... न मुड़ी....!!! न रुकी.....!!!
गर होती तो..... रुकती शायद?

यह तो मेरा मन था
जो सपने बुन रहा था,
खयालों मैं उसका
साया चुन रहा

घबरा कर उठा तो
चारों तरफ अंधेरा था,
बेवफा अंधेरे में ,
मेरा साया ही कहां मेरा था....
सुजाता दुआ, दिल्ली

23 comments:

Anonymous said...

good one ..it is really a very beautiful dream that u are having in ur mind...i am completely flattered by this post....
यह तो मेरा मन था
जो सपने बुन रहा था,
खयालों मैं उसका
साया चुन रहा

Anonymous said...

this will one of my favouraite poem

Vinay Jain "Adinath" said...

उसके गीले गाल
कुछ कह रहे थे,
जी चाह रहा था कि
उसके सारे आंसू पी लूं,
कितने ही जख्म हों, सब मैं ले लूं।

Bahut umda bahut-bahut shubkamnaye..

Anonymous said...

On 12/12/08, Abhinav Dutt <7712908216599634024@mail.orkut.com> wrote:
> Hey ....... got to ur page by accident from the respect women
> community........... ( it seems that now a days hardly any one visits that
> community) and then saw ur poem ......... i saw it ones before but read
> it ........... it was nice and reminds of human life and
> limitations ......... gr8 work ALL THE BEST
>

Subodh Dua, Delhi का कहनाहै : said...

Superb, Love you.
[7 Oct, 2008 | 2133 hrs IST]

sudarshan, mumbai said...

लंबे अरसे के बाद नेट पर समय बिताया... कविता बहुत अच्छी लगी ... ऐसे ही लिखते रहना...
[30 Oct, 2008 | 1800 hrs IST]

Abhinav, Delhi said...

This was quite imaginative, like things were happening in front of you or you are watching it over television. You really have gr8 skills in writing Keep it up.
[12 Dec, 2008 | 1514 hrs IST]

Subodh Dua, Delhi said...

Superb, Love you.
[7 Oct, 2008 | 2133 hrs IST]

GURBAX SINGH, N.DELHI said...

उसे हो न हो, उसे कोई प्यार करता है, उसी सनम के रूक्सार पे, यही सब साफ लिखा है, लोग रातों की बात करते हैं, हम ने दिन में भी चांद देखा है.
[3 Oct, 2008 | 1043 hrs IST]

Raju Mishra, Bangkok said...

सुजाता जी आपकी कविता बहुत ही अच्छी है. हालात के अनुसार ढलना ही जिंदगी है. कैसे करूं तारीफ उसकी जिसने ये कविता लिखी, कविता के हर शब्द में बहुत ही दर्द दिखा.
[3 Oct, 2008 | 1215 hrs IST]

pagli, delhi said...

apne bahut hi achi kavita likhi hai aise hi likhti rehna
[3 Oct, 2008 | 1425 hrs IST]

Gaurav , Laxmi Nagar said...

आपकी कविता दिल को छू गई .
[3 Oct, 2008 | 1636 hrs IST]

sundar, noida (ncr) said...

मेरे ख्याल से आपने एक सुने दिल को फिर से प्यार करना सीखना चाहते हैं।
[3 Oct, 2008 | 1747 hrs IST]

Sujata Dua, said...

मैं आप सब की शुक्रगुजार हूं कि मेरा नन्हा सा ख़्याल आप लोगों को पसंद आया..और मिस पगली प्लीज़ राइट योर नेम
[4 Oct, 2008 | 1442 hrs IST]

neema, Delhi said...

aapki poem un logo ki purani yodo ko fir taza kar deti hai jinho ne shyad kabhi kisi se pyar kiya hoga .
[4 Oct, 2008 | 1725 hrs IST]

Manu, Pune said...

Really Nice. Great job...... keep it up ma'am.
[5 Oct, 2008 | 0817 hrs IST]

pagli, delhi said...

sujata ji naam me kya rakha hai? waise bahut hi acha likha hai apne
[5 Oct, 2008 | 1255 hrs IST]

khurshid, kuwait said...

बहुत खूब सुजाता जी. तारीफ़ के लिए लफ्ज़ नही है ऐसे ही लिखती रहिए
[5 Oct, 2008 | 1934 hrs IST]

Banwari Lal Swamy, 12-120/3, B.K.Street, Palamaner(A.P.) said...

जड़ लेता जड़ा लेता तेरे नग को नगीने में, मगर यह चीज़ ऐसी है रखी जानी है सीने में.
[5 Oct, 2008 | 2123 hrs IST]

Dr. Sharma, Delhi said...

बहुत अच्छी कविता, धन्यवाद नवभारत को पाठकों को एक मंच प्रदान करने के लिए....
[6 Oct, 2008 | 1623 hrs IST]

Raj, Chennai said...

It was really nice. hope i will get opportunity to read some more quality poem form you like this in future.
[7 Oct, 2008 | 0845 hrs IST]

Shekhar Dhawan, Delhi said...

Superb poem...Usually I dont understand hindi becz the words are too difficult....but what have written is simply remarkable....in the begining it looks as if everything is happening in reality...and in the end it was all a part of a beautiful dream....I foung it exotic becz the same incidents happened with me....and i cudn't do anything.... Dis will touch the heart of all the lovers who have ever had the feel of loving someone....
[7 Oct, 2008 | 1141 hrs IST]

Abhinav, Delhi said...

This was quite imaginative, like things were happening in front of you or you are watching it over television. You really have gr8 skills in writing Keep it up.
[12 Dec, 2008 | 1514 hrs IST