मैं अकेला कहाँ चला था
साथ थी सातों दिशाएँ
और मन की अनेक व्यथाएं
अनगिनत आकान्शायें
और जमाने की प्रत्यंचाएं .
साथ थी सातों दिशाएँ
और मन की अनेक व्यथाएं
अनगिनत आकान्शायें
और जमाने की प्रत्यंचाएं .
था थोडा सा उजाला
और घना था अन्धेरा
रास्ता बीहड बहुत था
पर संकल्प घना घनेरा ..
मैं अकेला कहाँ चला था
और घना था अन्धेरा
रास्ता बीहड बहुत था
पर संकल्प घना घनेरा ..
मैं अकेला कहाँ चला था
साथ था विश्वास मेरा
No comments:
Post a Comment