संघर्ष जरूरी है ...रूह एक बार जलेगी तो कुंदन होगी ...माना बिलकुल सही है जल जल कर ही कुंदन हुआ जाता है पर जलना किस हद तक है यह कौन तय करता है ..और अगर जयादा जल गए तो मरहम काम भी करेगा या नहीं...? कर लिया तो जलने का गम भी कुछ हद तक भर ..ही जाएगा और नहीं भरा तो ...कौन जिम्मेवार होगा ...वो जिसने कहावत बनायी लेकिन पूरी नहीं बनायी ..या वो जिसने मानी लेकिन अंत के बारे में नहीं सोचा ....कमाल है आज कल जो पढ़ती हूँ उस पर ही सवाल करने लगती हूँ ..जिन्दगी जयादा समझ आने लगी है या की जो थोड़ी बहुत पहले समझ आती थी वो बत्ती भी गुल है ..?
No comments:
Post a Comment