Monday, March 7, 2016

ऐ जिन्दगी तेरे अहसान उतारने है मुझे
वक्त रहते कुछ कर्ज उतारने हैं मुझे
वो आंसू जो तूने दिए थे कभी
बन के मोती पन्नो पर दमकते हैं अब भी
वो श हतूत के पेड़ से गिरना और
आधी बेहोशी में घर तक जाना
जीवन के मुश्किल पलों में लडखडा कर चलना सिखा गया था
वो रूमानी अहसास जो किसी कोमल पल में
तूने यूँ ही मेरी झोली में डाल दिए थे
वो आज भी महकते हैं उसी तरह
मेरे बेटे का वो नन्हा स्पर्श जो
मैंने पहली बार अपने गर्भ में अनुभव किया था
वो आज भी ज्यूँ का त्यूं मेरी आत्मा में ज़िंदा है
वो सेंकडों लम्हे जब दोस्तों के साथ
घंटों और दिनों तक एक ही बात पर हंसा करती थी मैं
आज भी मुझे गुदगुदा कर जाते हैं कभी कभी
वो मुश्किल पल जिन्होंने पल पल रुलाया
न जाने कब मन की गहराइयों तक पेठ कर
कतरा कतरा मेरे कोमल मन को सींचते रहे
की आज कठिन से कठिन पल भी आसान लगने लगा है
डगमगाना ,गिरना ,सम्हलना,फिर चलना और मुस्कराना
कितना कुछ तूने यूँ ही सिखाया है मुझे
ऐ जिन्दगी तेरे अहसान उतारने है मुझे
वक्त रहते कुछ कर्ज उतारने हैं मुझे

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