Wednesday, December 24, 2008


Wednesday, December 24, 2008

पारदर्शिता

लोग अक्सर बनाते हैं ...
शब्दों के खूबसूरत घर
फिर उसे सजाते हैं ...
उपमाओं से ......
और खुश हो जाते हैं ...
अपनी वाक्कौशल पर


पता नहीं .....
नादान होते हैं या अनजान
जो इतना भी नहीं जानते
बिना भाव के शब्द
खोखले होते हैं ....
इतने पारदर्शी की
उनमें देखा जा सकता है
आर -पार की फिर
उन्हें (लोगों को ).....
आजमाने की
जरूरत भी नहीं रहती

सादर ,
सुजाता दुआ

2 comments:

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

bahut saarthal abhivyakti.

badhaaee

Sujata Dua said...

shukriyaa ....aapkee pratikriyaa mere liye bahut maaynen rakhtee hai