क्यों है अब भी आस .........
तुमने चाहा था
खोल दूँ दिल की गांठ
होंठ तो खुले पर
शब्द निकले ही नहीं
आँखों ने तो कही थी
मन की वेह बात पर
तुम समझे ही नहीं
मैंने चाहा तो था तुम
पढो दिल की किताब
उन पृष्ठों पर थे जो शब्द
तुम्हे दिखे ही नहीं
कहा था तुमने
यह है जनम भर का साथ
पर कहां था तुम्हारा हाथ
मुझे दिखा ही नहीं
मेरा हर सवाल
लोट आता खाली हाथ
फिर भी हो भ्रमित
चल रहीं हूँ साथ
क्यों है अब भी आस
मैं समझी ही नहीं
सुजाता दुआ
4 comments:
Ye to esi pyaas hai , jo kabhi bujhati hi nahi...aur pane ki aas , joki zinda hone ka ahsaas bhi deti hai...
Akhir ensaan hote hi ese hai.. jitana mile utana kam pad jata hai...
Kya baat hai....
"मैंने चाहा तो था तुम
पढो दिल की किताब
उन पृष्ठों पर थे जो शब्द
तुम्हे दिखे ही नहीं"
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अनकही , अनसमझी भावनाओं की अभिव्यक्ति अच्छी लगी ।
this is an awesome poetry...
कहा था तुमने
यह है जनम भर का साथ
पर कहां था तुम्हारा हाथ
मुझे दिखा ही नहीं
gud one/.....
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