Wednesday, October 10, 2012

निःशब्द

बहुत बार कोशिश करने पर भी सही लफ्ज कागज़ पर नहीं उतरते ...कितना भी लिख लो कहानी की आत्मा कुलबुलाती ही रहती है कभी तृप्त नहीं होती ....आत्माओं का कोई  ठोर ठिकाना  नहीं होता ..बेहद मनमौजी होती है ....आज बहुत खुश हैं तो कल बहुत उदास ....कल तक जो  कहानी रोमांच से भरपूर प्रफुल्लित थी वो अंत तक आते उदास होने लगती है और फिर  अंत पर आकर ज़िद्दी  बच्चे की तरह अड़ियल हो जाती है ...कितनी भी कोशिश कर लो ..समझा लो पुचकार लो मगर मजाल है की वो मान जाए ..उसे नहीं बढना है तो वो नहीं  बढ़ेगी ..ऐसी ही अनेको अधूरी कहानियाँ यूँ ही अलमारी में यहाँ वहां बिखरी दबी रहती हैं उस दिन यूँ ही साफ़ सफाई करते समय    कुछ पन्नों का एक पुलिंदा यकायक सामने आ गिरा ...


    मैं यूँ ही पढने लगी  मेरे ही लिखे लफ्ज मुझे रोमांचित कर रहे थे ....जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ने लगी ..मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी ...पता नहीं कितना वक्त हो चुका था इस कहानी को लिखे कोई भी ...दृश्य स्पष्ट याद नहीं था ...इसलिए उसे पढने में आनंद भी आ रहा था की यकायक एक घटना को पढते -2
मन विचलित होने लगा.........

'राजीव ने सोच लिया था अभी नहीं तो कभी नहीं ......ये टुकड़ों में बंट  कर मुझ से नहीं जिया जाएगा आज तो कह ही दूंगा पापा से नहीं करना है मुझे ऍम बी ए  नहीं बनना  है मुझे sales executive ..वो कोई मेरे सगे पापा तो हैं नहीं जो मेरे मनाने से मान जायेंगे और मुझे वो करने देंगे जो मै  करना चाहता हूँ     ....जयादा से जयादा  क्या हो जाएगा मुझे घर से चले जाने को ही कहेंगे न तो चला जाउंगा ...रह लूंगा कहीं भी यहाँ वहाँ और audition   देता रहूंगा किसी दिन कभी तो मुझे फिल्म में  काम मिलेगा ..और नहीं मिला तो बेनाम ही मर जाउंगा ...पर यूँ घुट घुट कर उधार की जिन्दगी नहीं जियूँगा मैं .....नहीं कभी नहीं ..पूरे संकल्प से वह घर में कदम रखता है  ....तभी श्रुती  दौड़ कर आ कर उससे लिपट जाती है  उसे कुछ स मझ नहीं आ रहा ...'.. घर में इतनी   खामोशी क्यूँ है सब कहाँ गए श्रुती ...'
श्रुती  रोने लगती है ..ह्रदय विदारक रुदन ..वह दौड़ कर घर के अन्दर जाता है सफ़ेद चादर में लिपटा एक शव धरती पर पडा है ....वह मुंह उघाड़ देता है ..... कांपते कदमों से वहीँ बैठ जाता है .....
उसके पापा का शव धरती पर पड़ा है ...कुछ क्षण पहले का उसका आंतरिक विद्रोह भी उनके शव के साथ ही निढाल पड़ा था ...बस कुछ ही साँसे शेष थीं .....'

कुछ ही साँसे शेष थीं मतलब ...फिर क्या हुआ ......

यहीं पर आ कर कहानी रुक गयी .......और एक बार फिर मैं खुद को पराजित होते हुए देख रही थी ..निःशब्द

   

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