वो कल आयी थी
वही सवाल था उसकी
आँखों में
मेरे पास जिसका जवाब नहीं था
मैं उस से नजरें चुरानें लगा
पुरुष हो कर भी कमजोर हूँ
बुजदिली से उसे बतानें लगा
वह सुनती रही ,
मैं कहता रहा ...
वह लौट गयी......
मुझे भी गुमां होने लगा
अपनीं चतुराई का
और फिर सोचनें लगा
कल क्या कहूंगा
जवाब पहले से तय हो
तो जुबां लडखडाती नहीं हैं
आज... दिन ढले तक भी
वह नहीं आयी ...
कई बार मैं दरवाजे तक
जा कर हो आया
मन में बैचेनी
उफननें लगी
बाहों में पुरुषत्व
मचलनें लगा...
अँधेरे के फैलते साए में
मुझे साफ़ नजर
आनें लगा .....
अपना खोखला अस्तित्व
सुजाता दुआ
वही सवाल था उसकी
आँखों में
मेरे पास जिसका जवाब नहीं था
मैं उस से नजरें चुरानें लगा
पुरुष हो कर भी कमजोर हूँ
बुजदिली से उसे बतानें लगा
वह सुनती रही ,
मैं कहता रहा ...
वह लौट गयी......
मुझे भी गुमां होने लगा
अपनीं चतुराई का
और फिर सोचनें लगा
कल क्या कहूंगा
जवाब पहले से तय हो
तो जुबां लडखडाती नहीं हैं
आज... दिन ढले तक भी
वह नहीं आयी ...
कई बार मैं दरवाजे तक
जा कर हो आया
मन में बैचेनी
उफननें लगी
बाहों में पुरुषत्व
मचलनें लगा...
अँधेरे के फैलते साए में
मुझे साफ़ नजर
आनें लगा .....
अपना खोखला अस्तित्व
सुजाता दुआ