Saturday, February 21, 2009

मंजिलों के उजाले
मुझे नहीं लुभाते

मैने साहिल पर कश्तियों को डूबते देखा है

5 comments:

Shamikh Faraz said...

bahut achhi kavita lekin zindagi se is tarah nahi hara karte. mere blog par aayen aur apne kivan me rang bhare se sambandhit padhe.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

ये भी एक अच्छा तरीका है अपनी बात कहने का ,
छोटी पंक्ति में गहरी बाते ..
अच्छा है, किंतु जीवन में अक्सर ऐसा नही होता. खेर..अपने अपने पहलु है...रचना चाहिए.

Sujata Dua said...

शैमाक जी,अमिताभ जी,
आपकी शुभकामनाएं निःसंदेह प्रशंसनीय हैं
सदा आभारी रहूँगी.....
सुजाता

gazalkbahane said...

ले चलो कश्ती भँवर में‘श्याम तु अपनी
यूं किनारे डूबने को मन नहीं करता

श्याम

Sujata Dua said...

Such a heart felt write shayam ji
regards,
sujata