बहुत दिन नहीं हुए अभी इस बात को याद तो तब धुंदली होती है न जब हम उसे उपेक्षित छोड दे कभी दोहराये नहीं लेकिन उन यादों का क्या करें जिन्हें हम हर समय साथ लिए फिरते है वो उतरती नहीं और हम उनसे छूटते नहीं खैर वो जो भी हो मुद्दा यह है की कितना ठीक है यादों को ढोना जब जानते हैं की याद सिर्फ याद है और वो कभी आज नहीं हो सकती ....मिथ्या है .... तो क्यों बेवजह तर्क देते हैं ....कभी खुद को सही ठेरातेय हैं और कभी नियति को गलत ....
गुजर जाए वो लम्हा तो ही अच्छा है
बिता वकत चाहे जितना अच्छा है
साथ तो आज ही चला है न हमेशा
फिर चाहे वो झूठा है या सच्चा है